परिवर्तनकारी शक्तिहरु को लागि एक आवाज
  • Janakpur Railway

    नेपाल को एकमात्र रेल्वे सेवा जनकपुर मा छ तर सरकार पक्ष बाट मधेशीमाथि मात्र विभेद नभएर यस रेल्वे मा पनि भएछ जसले गर्दा यसको हालत झन् झर-झर हुन् पुगेको छ ।

    कहिले काही त् बिना driver पनि कूद छ यो रेल्वे !

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  • Lumbini- Birth place of Lord Buddha

    Lumbinī is a Buddhist pilgrimage site in the Rupandehi district of Nepal. It is the place where Queen Mayadevi gave birth to Siddhartha Gautama. Siddhartha Gautama lived roughly between 623 and 543 BCE and he founded Buddhism as Gautama Buddha.

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Article by Kanak Dixit in Hindustan Times


कनक मणि दीक्षित, वरिष्ठ नेपाली पत्रकार
First Published:15-07-14 08:45 PM in Hindustan Times

नेपाल के मधेसी और भारत की चिंता
नेपाल में राजनीतिक स्थिरता और उसका आर्थिक विकास, दोनों भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, खासकर नेपाल से लगे इसके दो प्रदेशों- उत्तर प्रदेश और बिहार के सुख-चैन इससे खासा प्रभावित होते हैं। भारत के नए राजनीतिक नेतृत्व के लिए यह निहायत जरूरी है कि वह नेपाल के साथ रिश्तों पर ध्यान दे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम को इस दिशा में तत्काल सक्रिय होना चाहिए और काठमांडू में संघीय प्रणाली को लेकर छिड़ी बहस से जुड़ना चाहिए। इस बहस में नेपाल में जो प्रस्तावित किया जा रहा है और भारतीय वार्ताकारों के जो सुझाव हैं, वे किसी भी पक्ष के हित में नहीं हैं। उनके भी नहीं, जो दोनों तरफ के सीमावर्ती मैदानी इलाकों के बाशिंदे हैं।
Kanak Dixit

साल 2007 में नेपाल के अंतरिम संविधान ने इसे संघीय गणराज्य घोषित किया था, लेकिन राज्यों का खाका खींचने का काम संविधान सभा पर छोड़ दिया था। चार वर्षो की कोशिशों के बाद आखिरकार संविधान सभा साल 2012 में धराशायी हो गई और इसके मूल में संघीय स्वरूप को लेकर पैदा हुई कटुता ही थी। पिछले वर्ष नवंबर में हुए चुनावों के बाद यह दूसरी संविधान सभा अस्तित्व में है और अब भी संघीय स्वरूप का निर्धारण ही बहस का केंद्र है। जिस तरीके से राज्यों का गठन होगा, उनसे ही यह तय होगा कि संतुलित विकास के लायक स्थितियां होंगी या फिर ऐसे राज्य गठित होंगे, जिनके तहत कुलीन तबके को फायदा होगा तथा वंचित लोग और अशक्त कर दिए जाएंगे।
नेपाल के संघीये ढांचे को लेकर दो तरह के विचार आमने-सामने हैं। एक तरफ वे लोग हैं, जो आर्थिक भूगोल के आधार पर राज्य गठित करने की मांग कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ वे लोग हैं, जो पहचान के आधार पर राज्यों का खाका खींचने की बात कर रहे हैं। पहले समूह के लोगों का तर्क है कि पहाड़ और मैदान, दोनों को मिलाकर राज्यों की रूपरेखा तय की जाए, ताकि उनमें आर्थिक सहयोग बढ़े और उनका समुचित विकास हो। दूसरी तरफ जातीय (जनजाति) और मधेसी समुदाय के कार्यकर्ताओं (तराई के लोगों) का कहना है कि केवल पहचान पर आधारित संघीय ढांचा ही उन्हें काठमांडू की सत्ताधारी जातियों और वर्गो के ऐतिहासिक चंगुल से मुक्ति दिलाएगा। नेपाल के लोग इस मसले को खुद ही सुलझा लेते, मगर बीजिंग और नई दिल्ली के इसमें कूद पड़ने से यह मसला और उलझ गया है। बीजिंग यह साफ कर चुका है कि वह पहाड़ी इलाकों में जातीय पहचान पर आधारित राज्यों के गठन के पक्ष में नहीं है, शायद चीन तिब्बत में फैली जातीय राजनीति से चिंतित है।दूसरी तरफ, भारत की प्राथमिकता ‘एक मधेसी प्रदेश’ की है। एक मैदानी राज्य के पक्ष में उठी लोकप्रिय मांग को देखते हुए मधेसी समुदाय के संशयवादी भी अब खामोश हो गए हैं।
न तो चीन ने और न ही भारत ने नेपाल के संघीय ढांचे पर अपना पुराना रुख बदला है, जबकि नवंबर 2013 के चुनाव के बाद नेपाल की जमीनी सच्चई बदल चुकी है। नेपाली मतदाता अपने वोट के जरिये आर्थिक भूगोल पर आधारित राज्यों की रूपरेखा के पक्ष में अपनी राय जाहिर कर चुके हैं और इसीलिए उन्होंने नेपाली कांग्रेस और सीपीएन (यूएमएल) को नई संविधान सभा में दो-तिहाई सीटें दीं। माओवादी और मधेसीवादी पार्टियों और पहचान आधारित सूबों के पक्षधरों को उन्होंने इस चुनाव में परास्त कर दिया।
नेपाल के मधेसी नागरिकों को लंबे समय से बोझ समझा जाता रहा है। वे न सिर्फ सामाजिक-आर्थिक रूप से हाशिये पर धकेले जाते रहे, बल्कि काठमांडू में मान्य पहाड़ केंद्रित ‘पहाड़िया’ पहचान से भी वे बेदखल किए गए। ऐसे में, साल 2007 की जनवरी-फरवरी में स्वत:स्फूर्त मधेस आंदोलन एक निर्णायक मोड़ के रूप में सामने आया और इस आंदोलन ने यह सुनिश्चित किया कि काठमांडू व देश के दूसरे हिस्सों में भी मैदान के लोग बराबर सम्मान के हकदार हैं। पहाड़ और मैदान को मिलाकर ही एक नेपाल की समझ विकसित होने लगी। ऐसे में, सवाल यह उठता है कि ऐतिहासिक विलगाव के आधार पर नेपाल के संघीय स्वरूप का ढांचा तैयार होना चाहिए या फिर पूर्व में उपेक्षित समुदायों की समृद्धि को पक्का करने के लक्ष्य के आधार पर? पहचान के आधार पर राज्यों के गठन की मांग ने संघ के स्वरूप की बहस को तराई क्षेत्र के राज्यों पर केंद्रित कर दिया है।
नेपाल में सबसे अधिक गरीबी और शोषण मधेस नागरिकों के बीच ही है और संघ को उनकी राजनीतिक और आर्थिक मुक्ति का वचन देना ही चाहिए। मेरा मानना है कि एक ही सूबे के नागरिक के तौर पर मैदान के लोगों की भी पहाड़ के संसाधनों तक स्वाभाविक पहुंच होनी चाहिए। तराई के इलाके मूलत: कृषि पर निर्भर हैं, यहां औद्योगीकरण की अपार संभावनाएं हैं। केवल खेती से तराई के गरीबों का जीवन-स्तर नहीं सुधर सकता। ये गरीब मधेसी काठमांडू के साथ-साथ मैदानी सामंतों की उपेक्षा के शिकार रहे हैं। इसलिए हमें पहाड़ों की उदार सहायता का यह वादा भी सुनिश्चित करना पड़ेगा कि कृषि-वानिकी, पर्यटन, पनबिजली, सेवा-उद्योग, जल प्रबंधन और सिंचाई आदि पर मैदान के लोगों का भी हक है।
अलग तराई प्रदेश के विचार का पहाड़िया नेताओं द्वारा जोरदार विरोध न किए जाने से भी संदेह होता है। यदि पहाड़ों की प्राकृतिक संपदा तराई की विशाल और गरीब आबादी के साथ साझा नहीं की गई, तो उन पर सिर्फ पहाड़ी सूबों का एकाधिकार होगा। जहां तक अलग तराई प्रदेश में भारत की दिलचस्पी का सवाल है, तो इसके पीछे उसकी अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंता हो सकती है। वह शायद चाहता है कि इस तरह उसकी खुली सीमा के साथ एक बफर क्षेत्र बन जाए। लेकिन बेहतर विकल्प यह है कि भारत में उग्रवादियों की घुसपैठ को रोकने के लिए नेपाल से अधिक सहयोग मांगा जाए। इस लिहाज से मौजूदा व्यवस्था से अधिक कारगर प्रत्यर्पण संधि होगी। यदि इसके पीछे नेपाल में चीन के बढ़ते प्रभाव को (यदि वह है) रोकना है, तो बफर क्षेत्र का यह विचार कारगर साबित नहीं होगा, क्योंकि चुरे/ शिवालिक पहाड़ियों की तरफ से चीन का वह प्रभाव आ सकता है।
साफ है, नेपाल में संघीय ढांचे को लेकर जारी बहस में भू-राजनीतिक, राजनीतिक-आर्थिक और सामुदायिक पहलुओं के साथ न्याय नहीं हो रहा। इस मसले पर दिल्ली, लखनऊ और पटना की सिविल सोसायटी, अकादमिक क्षेत्र और राजनीतिक तबके में किसी प्रकार की खुली बहस न होने के घातक निष्कर्ष निकल सकते हैं। एक समृद्ध तराई नेपाल के लिए तो अच्छा है ही, इससे उत्तरी बिहार और उत्तर प्रदेश को भी आर्थिक संबल मिलेगा। मगर यदि नेपाल के संघीय ढांचे को गढ़ने में कोई चूक हुई, तो इसकी कीमत दोनों देशों के लोगों और समाज को चुकानी पड़ेगी।

Source: Hindustan Times

आध्यात्मिक संस्कृति र भोगवादी तथा भौतिकवादी अपसंस्कृति

२०० करोड़ वर्ष पुरानो हाम्रो आध्यात्मिक संस्कृति माथि कसरी प्रभाव पारिरहेको छ युरोप र पश्चिम को भोगवादी (Sensualist) तथा भौतिकवादी अपसंस्कृति !

our culture vs west culture

एक अर्ब, छियानवे करोड़, आठ लाख, तिरपन्न हजार, एक सौ चौदह (१,९६,०८,५३,११४) वर्ष पुरानो वैदिक संस्कृति, सभ्यता र ऋषि परम्परा भएको हाम्रो देश का अधिकांश आधुनिक युवापिड़ी को mind set कसरी परिवर्तन गराईरहेको छ। उनीहरुको सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक तथा राजनैतिक सोचमा पश्चिम को आदर्श, सिधान्त तथा विचारधारा लाई कसरी थोपिरहेको छ। कसरी नेपालको सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक रुपमा दास बनाईरहेको छ-

यस विषयमा धेरै सोच-विचार, गन्थन-मन्थन र चिन्तन गरे पश्चात आफ्नो विचार साझा गरिरहेको छु, जसले गर्दा हामी सबै मिलेर यो पुरै चक्रव्यू लाई तोडन सकौ तथा एक आध्यात्मिक र आर्थिक शक्ति सम्पन्न राष्ट्र को निर्माण गर्न सकौ।

१. असंयम लाई उत्प्रेरणा: यहाका बाल-बालिका को कोमल दिल-दिमाग मा सानै देखि स्कुल देखि विश्वविद्दालय सम्म एक भोगवादी (Sensualist) विचारलाई बड़ो टाठोपनले राखिन्छ कि जीवनमा सबै कुराको अनुभव एक चोटी अवश्य गर्नु पर्छ चाहे त्यो नशा, वासना, मांसाहार वा उपभोक्तावादी बदलाको भाव राख्ने बोली, व्यवहार, आहार, कला वा निर्त्य आदि किन् न हिस्।

जबकि हाम्रो पूर्वज, शान्ति का दूत बुद्ध को यो मान्नु कि पाप, अनाचार, दुराचार, नशा, मांसाहार, अश्लिल, अनैतिक तथा अधार्मिक कार्यलाई एकचोटी पनि गर्नु हुँदैन। एक क्षिण को लागि पनि आफ्नो मनुष्य जीवनमा अशुभ, अज्ञान, अनाचार र अपवित्रता लाई स्थान दिनु हुँदैन। के हामी साइनाइड लाई एक चोटी टेस्ट गर्छौ?

२. भोगवाद (Sensualist) महिमा: प्रचार माध्यम, सोसल मेडिया तथा पत्रकारिता को दुरुपयोग गरेर आधुनिक युवापिड़ी को मनमा यस भोगवादी तथा भौतिकवादी विचारलाई गहिरो तरिकाले बसाई दिएको छ कि "खुब कमाउ, खुब खाऊ र खुब सुख भोग"। हामीलाई योगी बाट भोगी र रोगि तथा पुजारी बाट उपभोक्ता बनाई दिए।

हाम्रो यँहा जीवन को आदर्श थियो - के यसको बिना म बाच्न सक्छु? तथा पूर्ण विवेक र मुल्यको साथ मेहनत गरेर न्यायपूर्ण तरिकाले आर्जनगरेको बाट आफ्नो र आफ्नो परिवारको लागि अति-आवश्यक जरुरतहरु पुरा गरि वाकी रहेका सब सेवामा समर्पित गर्ने हाम्रो तप, त्याग, दान र सेवाको परम्परा रहेको छ।

त्यागवाद र अध्यात्मकवाद जस्तो आदर्श परम्पराको स्थानमा चारैतिर भोगवाद र बजारवाद को दुषित वातावरण बनेको छ र अन्तोगता विनाश को बाटोमा हामीलाई ल्याइदिएको छ।

३. पश्चिम को महिमामंडन: जे पनि राम्रो छ त्यो पश्चिम बाट आएको छ चाहे त्यो साइन्स एण्ड टेक्नोलोजी होस् अथवा, culture civilization, development research and invention. जबकि यथार्त यो हो कि ५०० वर्ष पहिले अमेरिका को नाम पनि कसैलाई थाहा थिएन, दुइ हजार वर्ष पहिलेको युरोप को कुनै संस्कृति थिएन। यस्तै १४ सय वर्ष पहिले इस्लामको अतो-पतो थिएन, तबदेखि हाम्रो संस्कृति छ। तर दुर्भाग्यले इतिहास र महान व्यक्तित्व वारे दुनियामा सबभन्दा बढी झुठ र भ्रमहरु फैलाइयो, जातपात को नाउमा द्वन्द गरायियो, नस्लको नाउमा भेदभाव गरायियो तथा हरेक कुरामा पश्चिमको प्रति आदर्श, आदर र आकर्षक को मूल्य भरियो।

४. नेपाल का महानता को अनादर: नेपालको प्रायजसो नेताहरुले विदेशीसंग मिलेर देशमा सबभन्दा ठुलो पाप यो गर्यो कि आफ्नो देशलाई गरिब बताएर यसलाई निरन्तर लुटी राखे र आज पनि यो लुट र झुठ जारी छ।
वीर 'गोर्खालीहरु', शान्तिदूत 'गौतम बुद्ध', आदर्शवादी राजा 'जनक', नेपाल एकीकरण का नाइके 'पृथ्वी नारायण शाह' आदि हरुको उचित मुल्यांकन नगरी उनीहरुलाई अनादर गरि राखे र पश्चिम संस्कृति लाई आफु माथि हावी हुन् दियो।

५. समानता को स्थानमा सहिष्णुता: समानता, बराबरी को स्थानमा हामी नेपाली को मनमा सहिष्णुता को कुरा बसाएर नेपालको सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक र राजनैतिक रुप ले खुब लुट्ने, दबाउने र दास बनाउने जस्तो कार्यहरु भयो र निरन्तर छ। हामीलाई अत्याचार सहन गर्न बाध्य बनाएको छ, अफ्नोलागी न्याय र स्वाभिमान कुरा गर्न माथि बन्देज लगाइएको छ। यस नीतिको तहत हाम्रो देशमा धर्म, संस्कृतिलाई विदेशी तथा स्वदेशी अवसरवादीहरुले कहिले पनि बराबरी र समानता को अधिकार सुनिश्चित गर्न दिएनन।

६. शोषण मा आधारित न्याय व्यवस्था: अंग्रेजले आफ्नो अनुकुल न्याय व्यवस्था भारतमा लागु गरे र विभिन्न सन्धिहरु को नाउमा नेपाललाई लागुगर्न बाध्य बनाए। तिनीहरुले ताकत र शोषण मा आधारित न्याय र विकाश को नाउमा यस्तो कुचक्र चलायो तथा यस्तो कानुन बनायो जसले पुरै विश्व मै सम्राज्यवादी, पुँजीवादी, बजारवादी, अधिनायकवादी, शोषणवादी व्यवस्था आफ्नो जकड़ बनायो।

यदी पुरै विश्व मा राजनीतिक गर्नेहरु बाट स्थापित कानुन व्यवस्था सत्य र न्यायमा आधारित छ भन्ने सब ठाउँ को कानुन व्यवस्था एक समान हुनु पर्दछ तर यस्तो छैन। अतः शोषण र ताकतमा आधारित कानुन व्यवस्था को ठाउँ मा सत्य र न्यायमा आधारित सबै कानुन, नीति र व्यवस्थाहरु हुनु परयो।

७. झुठो धर्मनिरपेक्षता: धर्म निरपेक्षता को झुठो नारा दिएर पुरै देशलाई धर्मविहिन र धर्मविमुख बनाई दियो। आज पढ़े-लिखेकाहरु पनि आफुलाई सैक्युलर भनाउन मा गौरवान्वित महशुस गर्छ। हाम्रो पूर्वजहरुले भौतिक र आध्यात्मिक उन्नति र समृद्धि लाई धर्म भनेको छ, बुद्धले जीवन मूल्य, अहिंसा, सत्य, संयम र सदाचार आदि लाई अथार्त सार्वजनिक जीवनको मुल्य-मान्यता र आदर्शलाई नै धर्म मानेको छ। कुनै कर्मकाण्ड आदि क्रिया मात्रलाई धर्म मानिएको छैन। हाम्रो धर्म ग्रन्थ, वेद, स्मृति आदि इत्यादी मा सृष्टि को सम्पूर्ण ज्ञान-विज्ञान सम्मलित छ जबकि पश्चिम यस्तो नभएको हुनाले धर्म को वारेमा धेरै भ्रमपूर्ण विचारधारा छन्।

८. अवैज्ञानिक विकासवाद: पश्चिम को तथाकथित आधुनिक विज्ञानले मानवजाति को उत्पतिलाई एक दुर्घटना वा प्राकृतिक संयोग मानेका छन्। विज्ञान र विकासवाद का तथाकथित सिद्धान्त को आधारमा मानवको पूर्वज अमिबा र बाँदरलाई मानेका छन्। जबकी आजपनि अमिबा छ तर अमिबा बाट बाँदर र बाँदर बाट मानव बनिरहेको छैन। जबकी हाम्रो संस्कृतिमा मानवलाई भगवान को सर्वश्रेष्ठ रचना मानिएको छ।

९. अहिंसा र शान्ति को नाम मा हिंसा र द्वन्द्द: अहिंसा र शान्ति पुजारी गौतम बुद्ध जन्मेको हाम्रो देश नेपालमा सार्वभौमिक र अनन्त नियम को स्थानमा पश्चिम ले पक्षपातपूर्ण अहिंसा र शान्ति को नारा दिएछ कि मानवलाई छोडेर सबै जीव-जन्तु गाई-गोरु, भैंसी-पाडा, भेड़-बाख्रा, कुखरा र माछा खाने योग्य छ। साथै मनमानी रुपले लडाई र अन्य आर्थिक तथा सामाजिक संघर्ष मा विश्वलाई धकलेर अनगिनत अक्षम्य पाप र अपराध पश्चिम ले गरेको छ।

१०. अनैतिक यौन सम्बन्ध को महिमामण्डन: संयमित यौन सम्बन्ध, परिवार र वैज्ञानिक परम्परा को स्थानमा पश्चिम अनैतिक र उन्मुक्त यौन को महिमामण्डित गरेर उसलाई एक अलौकिक सुखको स्थान दिरहेको छ। यसको परिणाम स्वरुप मानव, संस्कार र सम्बन्ध को मुल्य-मान्यता बाट अनभिग भएको कारण एक असभ्यपूर्ण निर्बोध (Brutish) जंगली अपसंस्कृति को शिकार भइरहेको छ\

निस्कर्ष को रुपमा हामी सबै नेपालीलाई आफ्नो गौरवशाली इतिहास र आध्यात्मिक परम्परा माथि गर्व गर्नु पर्दछ तथा पश्चिम को  अवैज्ञानिक दोषपूर्ण अपसंस्कृति बाट मुक्त राष्ट्र निर्माण को लागि सबलाई संकल्पित र संगठित भएर काम गर्नु पर्दछ।



Bring Black Money Home

Money earned from illegal sources is deposited in banks which later invested in share to make it white and ultimately that money used to strengthen illegal business. The vicious circle of money laundering has emerged to cheat revenue and wash black money to white.

The scale of money laundering in Nepal is unknown. Some are of the opinion that given the informal nature of the economy, predomination of cash transactions, open border with India, unstable political situation and rampant existence of predicate offenses like corruption, bribery, smuggling, human and drug trafficking, use of counterfeit currency, and of late, extortion, looting and arms trading all have combined to make Nepal a fertile ground for money laundering.

Money laundering is the main cause of black money in Nepal

Live Example: We all know that there is shortage of Indian Currency in Nepali market and even in Bank too. People are going India day to day for many purposes. Such as for marketting, for treatment, for higher studies, etc. They handed Nepalese currency to Nepalese money launder and take Indian currency from Indian money launder.
If this is happening publicly then imagine about gold, drugs and other valuable smugling from India and abroad and in this how much black money invested or earned? Birgunj, Biratnagar, Nepalgunj and Kathmandu are the major cities where exchange business of money is running publicly.

Banks should follow certain customer identification procedure for opening of accounts and monitoring transactions to stop the money laundering process.
Administration should stop the exchange business of money which is running publicly.

And the most important thing, our government should make policy to bring black money home from abroad. There is no certain data to me to show how much black money is in abroad but it will certainly helps in our country development.

But for this our officers have to be brave and honest likes SP Ramesh Kharel and Minister Lalbabu Pandit.

Voice of #ekawaaj

Story behind Holi Festival

Holi

is a spring festival also known as festival of colours, and sometimes festival of love. It is an ancient Hindu religious festival which has become popular with non-Hindus in many parts of South Asia, as well as people of other communities.

holi celebration in Madhesh, Nepal
It is primarily observed in India, Nepal, and other regions of the world with significant populations of majority Hindus or people of Indian origin.
Holi celebrations start with a Holika bonfire on the night before Holi where people gather, sing and dance. The next morning is free for all carnival of colours, where everyone plays, chases and colours each other with dry powder and coloured water, with some carrying water guns and coloured water-filled balloons for their water fight. Anyone and everyone is fair game, friend or stranger, rich or poor, man or woman, children and elders. The frolic and fight with colours occurs in the open streets, open parks, outside temples and buildings. Groups carry drums and musical instruments, go from place to place, sing and dance. People move and visit family, friends and foes, first play with colours on each other, laugh and chit-chat, then share Holi delicacies, food and drinks. In the evening, after sobering up, people dress up, visit friends and family.

Holi is celebrated at the approach of vernal equinox, on the Phalguna Purnima (Full Moon). The festival date varies every year, per the Hindu calendar, and typically comes in March, sometimes February in the Gregorian Calendar.

Significance

There is a symbolic legend to explain why holi is celebrated. The word "Holi" originates from "Holika", the evil sister of demon king Hiranyakashipu. King Hiranyakashipu had earned a boon that made him virtually indestructible. The special powers blinded him, he grew arrogant, felt he was God, and demanded that everyone worship only him.

Hiranyakashipu's own son, Prahlada, however, disagreed. He was and remained devoted to Vishnu. This infuriated Hiranyakashipu. He subjected Prahlada to cruel punishments, none of which affected the boy or his resolve to do what he thought was right. Finally, Holika - Prahlada's evil aunt - tricked him into sitting on a pyre with her. Holika was wearing a cloak (shawl) that made her immune to injury from fire, while Prahlada was not. As the fire roared, the cloak flew from Holika and encased Prahlada. Holika burned, Prahlada survived. Vishnu appeared and killed Hiranyakashipu. The bonfire is a reminder of the symbolic victory of good over evil, of Prahlada over Hiranyakashipu, of fire that burned Holika. The day after Holika bonfire is celebrated as Holi.

History and rituals

Holi is an ancient Hindu festival with its cultural rituals. It is mentioned in the Puranas, Dasakumara Charita, and by the poet Kālidāsa during the 4th century reign of Chandragupta II. The celebration of Holi is also mentioned in the 7th-century Sanskrit drama,Ratnavali.

There are several cultural rituals associated with Holi.
Prepare Holika pyre for bonfire
Holika Dahan
holika dahan in holi festival
Holika dahan
Days before the festival people start gathering wood and combustible materials for the bonfire in parks, community centers, near temples and other open spaces. On top of the pyre is an effigy to signify Holika who tricked Prahalad into the fire. Inside homes, people stock up on colour pigments, food, party drinks and festive seasonal foods such as gujiya, mathri,malpuas and other regional delicacies.

Holi Celebration in Nepal

In Nepal, Holi celebrated in Hills is remarkably different from Madhesh, even the festival is celebrated on two different days. Holi is celebrated in the month of Falgun and is also called as the "Fagu/Phaguwa" and is celebrated on the full moon day (in hills) and the day after (in Madhesh) in the month of February. The word "Fagu/Phaguwa" (Devanagari:फागु/फगुआ) represents the month of Falgun and the day is called the "Fagu Poornima" (Devanagari:फागु पुर्णीमा) which means (full moon day in the Falgun).
celebrating holi in madhesh

In Nepal Holi is regarded as one of the greatest festivals as important as Dashain (also known as Dussehra in Madhesh) and Tihar or Dipawali (also known as Diwali in Madhesh). Since more than 80% of people in Nepal are Hindus, Holi, along with many other Hindu festivals, is celebrated in Nepal as a national festival and almost everyone celebrates it regardless of their religion, e.g., even Muslims celebrate it. Christians may also join in, although since Holi falls during Lent, many would not join in the festivities. The day of Holi is also a national holiday in Nepal.

Breaking Tradition:

Widows Celebrate Holi Festival in India
Traditionally in Hindu culture, widows are expected to renounce earthly pleasure so they do not celebrate Holi.
But the women at the shelter for widows, who have been abandoned by their families, celebrated the festival together on Friday by throwing flowers and colored powder.
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women celebrating holi

Holi elebrations in other cultures


A celebration of Holi festival at UNC college campus United States, March 2011.jpg
North Carolina, United States
Holi One We Are One Colour Festival South Africa 2013 c.jpg
South Africa
A celebration of Holi festival at Stanford University United States, 2009.jpg
California, United States
Holi, the festival of colors in Germany 2012.jpg
Germany
Holi Festival of Colors Utah, United States 2013.jpg
Utah, United States
Holi celebrations in Malaysia 2012.jpg
Malaysia
Holi Festival Celebrations, The Netherlands, 2008.jpg
Netherlands
Holi celebrations at Parque Villa Lobos, 2013.jpg
Brazil
Holi festival is increasingly celebrated outside India and Nepal, in many parts of the world.
Source: Wikipedia

Reality of Federalism (Part 2)

के संघियताले साचै देश बिखन्डन गर्छ त ? के जातीय पहिचान सहितको संघियताले साचै देश टुक्रयाउछ त ?

हाम्रो देशमा संघियताले देश विखण्डन हुन्छ (नेपाल टुक्रिन्छ) भनेर भ्रम फिजाउनेहरु पनि धेरै रहेका छन् जस मध्य चित्र बहादुर केसीको जनमोर्चा मुख्य हो भने जातीय पहिचान सहितको संघियता हुदा देश बिखन्डन हुन्छ भन्ने तर्क दिने नेपाली कांग्रेस र नेकपा एमाले सहायक हुन !!

Symbol of Federalism

के संघियताले साचै देश बिखन्डन गर्छ त ? के जातीय पहिचान सहितको संघियताले साचै देश टुक्रयाउछ त ? यी प्रश्नहरुको सत्य तथ्य जवाफ खोज्नै पर्ने भएको छ त्यसैले कस्तो संघियताले देश टुक्रयाउछ र कस्तो संघियताले देश बलियो बनाउछ भन्ने बारेमा यहाँ छोटो चर्चा गर्दछु ! यसको बारेमा बिस्तृत लेख (देशहरुको ईतिहाससहितको उदाहरण समेटेर) केही समय पछी पोस्ट गर्नेछु !!

बिश्वमा संघीय राज्यहरुको निर्माण दुई किसिमले भएको पाइन्छ ! पहिलेका स्वतन्त्र राज्यहरुले आपसमा समझदारी , सम्झौता वा सन्धि गरेर संघ निर्माण गरेका थिए ! यस्तो संघीय राज्याहरुमा संयुक्त राज्य अमेरिका , स्विट्जरल्यान्ड , अस्ट्रेलिया , सोभियतसंघ लगायतका पुराना संघीय राज्यहरु पर्दछन् ! यसलाई राज्यहरु संगै आउने बिधि (Coming Together) पनि भनिन्छ !

अर्को पहिले एउटै एकाइको रुपमा शासित हुदै आएको एकात्मक राज्यहरुलाई बिभिन्न उप एकाइहरूमा बिभाजन गरी केन्द्र र प्रदेश बीच अधिकारको बाडफाड सहित संरचना खडा भएका छन् ! यस्तो संघीय राज्यहरुमा भारत , बेल्जियम , स्पेन , अस्ट्रेलिया आदि छन् ! यसलाई जातिगत , भाषिक एबं धार्मिक , भौगोलिक बिबिधता बीच राज्यलाई खण्डित हुन बाट जोगाउन राज्यलाई संगै राख्ने बिधि (Holding Together) पनि भनिन्छ ! त्यसैले संघियतालाई जाती , भाषा , सस्कृति , ईतिहास र बिबिधता सम्बन्धि समश्यालाई सम्बोधन गर्ने सबै भन्दा राम्रो राज्ययन्त्र मानिन्छ !अहिले हाम्रो नेपाल पनि यहि बिधि बाट संघिय प्रणाली तिर जादैछ !

संसारमा सुरुमा एक आपसमा आबद्द (Coming Together) भएर संघीय राज्य बन्यो ! यसको मुख्य कारण सामुहिक सुरक्षा र आफ्नो उत्पादनका लागी आवश्यक बजारको सृजना गर्नु थियो ! पछिल्ला दशकहरुमा नेपाल जस्तै एकात्मक बहुजातीय राज्यहरुमा देखा परेको जातीय , भाषिक र क्षेत्रीय द्वन्दहरुको कारण देशमा संकट देखा परेकोले देश बिभाजनलाई रोक्न नै संघियताको सुरुवात भएको हो ! यसरि पछिल्ला दशकहरुमा (Coming Together) बिधिबाट पनि संघीय राज्यहरु निर्माण हुन थाले ! यदि संघियता नअपनाएको भए युरोपका स-साना भूगोलको सिको गर्दै स्पेन र बेल्जियम अहिले जातीय आधारमा टुक्रीसकेको हुन्थ्यो ! अहिले पनि त्यहाँ समस्याहरु पुरै समाधान त भएका छैनन तर संघियता एक हदसम्म त्यसलाई मिलाउन सफल भएको छ ! फरक फरक पहिचान भएका मुलुकहरुमा संघियता छोडी एकात्मक देश बनाउने बितिक्कै इथियोपिया , मेक्सिको आदि देशको बिभाजन भयो जसबाट बुझ्न सकिन्छ की धेरै थरि पहिचान भएका देशको कुनै एकल जातीय समूहले अरु सबै माथि आफ्नो पहिचान , मान्यता र दृष्टिकोणहरु लाद्न थाले पछी त्यहाँ द्वन्द हुन्छ र देश बिभाजन हुन्छ !

हाम्रो छिमेकी मुलुक भारतमा पनि जुहारलाल नेहरुले मुस्लिक पहिचानको आधारमा राज्य निर्माण गर्न नमान्दा पाकिस्तान स्वतन्त्र हुन पुगे भने पाकिस्तानले पनि भाषिक पहिचानलाई अस्विकार गर्दा टुक्रेर बंगालदेश बन्न पुग्यो ! बहुपहिचान भएका संघीय राज्यहरुमा पनि केन्द्रीकरण गर्न खोज्दा धेरै देशमा समस्याहरु जन्मिएका छन् ! नेपालमा लामो समय देखि जातीय , भाषिक र क्षेत्रीय उत्पीडन रहेको र त्यो निरंकुसतामा कुण्ठित भएर रहेको भएता पनि ०६२/६३ को जनआन्दोलन पश्चात त्यो सतहमा आउन थाल्यो ! हामीले समस्याको रुपमा ठुलो संकट आउनु पुर्ब नै त्यसलाई समाधान गर्नु बुद्दिमानी हुन्छ ! यस सम्बन्धमा हामी सबैले बुझ्नु पर्ने कुरा यो छ की बराबरी अधिकार उपयोग गर्न दिदा हैन , जातीय उत्पीडन भयो भने देश भित्र बिद्रोह हुन्छ र त्यसले देश बिखन्डन हुन्छ ! साचो संघीय ब्यबस्थामा त देशको राज्यशाकि साझेदारी हुने तथा बिबिधताको संबिधान हुने भएकोले राष्ट्रिय एकता झन मद्बुद हुन्छ !!

(Article by Gopal Tamang, Image by Saroj Ray)

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1. Reality of Federalism (Part-1 ) 
2. Facebook Version (Part-1) (Part-2)

Reality of Federalism (Part-1)

संघीय राज्य बारे नेपालका एकात्मकबादी , यथास्थितिबादीहरुले फैलाएको भ्रम अनि त्यसको वास्तिविकता बारे यहाँ बुंदागद रुपमा छोटो चर्चा !!
Federalism is necessary for all Nepalese.
( १ ) सानो देशलाई संघीय व्यवस्था उपयुक्त हुन्न भन्ने बारे

संघीय ब्यबस्थामा जान मुलुकको भूगोल ठुलो हुनै पर्छ भन्ने गलत धारणा कतिपय ब्य्कतिहरुमा पाईन्छ ! वास्तबमा संघीय व्यवस्था भौगोलिक सिमाना ठुलो वा सानो भएको आधारमा अपनाउने हैन ! जुन देशमा बहुजातीय , बहुभाषिक , बहुसास्कृतिक र भौगोलिक बिबिधता हुन्छन् , उक्त देशमा बिभिन्न कारणले द्वन्द बढिरहन्छ ! त्यस्तो देशमा समाजमा समानता र सन्तुलन कायम गर्नको लागी संघीय व्यवस्था अपनाउनु उपयुक्त हुन्छ ! बिश्वमा अहिले २९ वटा संघीय व्यवस्था भएका देशहरु छन् ! तिमध्य भौगोलिक आधारमा नेपाल भन्दा साना अस्ट्रिया , संयुक्त अरब इमिरेट्स , बोस्निया हर्जगोबिना , स्विट्जरल्यान्ड , बेल्जियम , कोमोरस , माईक्रोनेसिया , पलाउ , सेन्टकिट्स तथा नेभिस र लिकटेन्सस्टाइ गरी १० वटा मुलुकहरु छन् , वास्तबमा नेपाल बाहिर चर्चा भए जस्तो सारै सानो मुलुक हैन ! बिश्वका करिब २०० वटा सार्बभौम मुलुकहरुमध्य नेपाल भूमिको आधारमा ९२ औ ठुलो देश हो भने जनसख्याको आधारमा ४० औ धेरै जनसंख्या भएको देश हो ! यसरि हेर्दा नेपाल सानो देश नभई मझौला आकारको देश हो ! कुनै पनि देश संघीय ब्यबस्थामा जाने की नजाने भन्ने कुरा देशको आकारले हैन , आवश्यकताले निर्धारण गर्दछ ! तसर्थ सानो देशलाई संघीय व्यवस्था उपयुक्त हुन्न भन्ने तर्क नै गलत छ !!

( २ ) धेरै जातजाति भएको देशमा संघियता सम्भब हुन्न भन्ने बारे 

संघियता धेरै जातजाती भएका र नभएका , आर्थिक रुपले समृद्द र गरिब , आकारमा ठुलोसानो सबै खाले मुलुकहरुमा छन् ! धेरै जातजातिहरु भएको देशमा त्यहाँको बिबिधतालाई सम्बोधन गर्न नै हामीलाई संघीय राज्य चाहिएको हो ! जातीय रुपमा हेर्दा भारतमा ५३३ , क्यानाडामा ६०८ , अमेरिकामा ५६३ , ब्राजिलमा ५५९ , नाइजेरियामा ३५० जातीहरु छन् तर प्रत्यक जातीको संघीय इकाई रहेको छैन ! युरोपमा थोरै जातीहरु छन् तर संघीय इकाई धेरै रहेको छ भने एसियामा धेरै जातिहरु छन् तर संघीय इकाई थोरै रहेको छ ! संघियतामा प्रत्यक जातिहरुको एउटा संघीय इकाई हुनु जरुरि छैन ! धेरै जातजाती भएको देशमा निश्चित ऐतिहासिक भौगोलिक आधार भएकाहरुलाई स्वायत्त प्रदेश स्तरमा र अन्यलाई स्वायतता भित्र स्वायत्तता दिनु पर्दछ तसर्थ धेरै जातजाति भएको देशमा संघियता सम्भब हुदैन भन्ने कुरामा कुनै सत्यता छैन !!

( ३ ) देशभरि छरिएर रहेका जातिहरुलाई संघियताले समेट्न सक्दैन भन्ने वारे  


जातजातिहरु देशभरि छरिएर रहेको हाम्रो जस्तो देशमा संघीय राज्यले सबैलाई समेट्न सक्दैन भन्ने गलत धारणा पनि नेपाली समाजमा धेरै पाईन्छ ! स्वायत्त प्रदेश , जिल्ला र गाउँ / नगरपालिकाहरुमा बाहुल्यता भएका जातजातिहरुका सन्दर्भमा संघियताले सम्बोधन गरे पनि देशभरि छरिएर रहेका जातजातिहरुलाई संघियताले कसरि सम्बोधन गर्दछ भन्ने कुरा स्पष्ट नहुनाले यस्तो भर उत्पन्न भएको हो ! त्यसरी देशैभरि छरिएर रहेको तर कतै पनि सघन रुपमा नरहेको समुदायहरुलाई सम्बोधन गर्नको लागी संघीय राज्यमा निगम (गैरभौगोलिक) संघियताका मान्यता विकास गरेको छ ! निगम संघियताले सम्पूर्ण देशलाई नै एउटा निर्बाचन क्षेत्र मानि त्यस्ता समुदायहरुको स्वशासनको अधिकारलाई सम्बोधन गर्न अलग अलग सरकार बनाउन पाउने अधिकार दिइएको छ ! अस्ट्रियाबाट सुरु भएको यो व्यवस्था हाल रुस , इस्टोनिया आदि देशहरुमा लोकप्रिय रहेको छ ! हाम्रो देशमा पनि देशैभरि छरिएर रहेको दलित तथा अन्य जातजातिहरुको लागी निगम (गैरभौगोलिक) संघियताको मान्यता अनुरुप सास्कृतिक स्वायत्तता प्रदान गर्ने तथा केन्द्रमा प्रतक्षरुपमा प्रतिनिधित्वको संरचना विकास गर्ने व्यवस्था गर्न सकिन्छ ! यसरि बिश्वमा प्रयोग भएर पनि सफल भइसकेको संघियताका मान्यताहरुलाई हाम्रो देश अनुकुल प्रयोग गरेमा देशैभरि छरिएर रहेको सबै जातजातिहरुलाई समेट्न सकिन्छ !!

( ४ ) संघियताले जातीय-क्षेत्रीय ठालुहरुको राज्य सृजना गर्छ भन्ने बारे

संघीय राज्यमा टाठा बाठा र ठालुहरुले फाइदा लिन्छन् भन्ने कुरा पनि उठ्ने गरेको छ ! यसमा केही हदसम्म सत्यता भए पनि यो निरपेक्ष कुरा हैन ! संघीय वा एकात्मक जुनसुकै देशमा पनि यस्ता समश्याहरु देखा पर्न सक्दछन् ! दक्षिण एसियामा संघीय राज्यका रुपमा रहेको भारतमा केन्द्रमा नेहरु-गान्धी बंशको हालीमुहाली तथा एकात्मक देशका रुपमा रहेको बंगलादेश , श्रीलंका , नेपाल आदि देशलाई हेर्दा जातीय ठालुहरुको नया राज बंश उदय भएको भान हुन्छ ! नेपालमा पुरानो एकात्मक ढाचामा साना समुदायहरु राज्य सत्तामा लगभग सुन्य अवस्थामा छन् ! तिमीहरु संसद वा सरकारमा सहभागी हुन बहुसंख्यकको दयामायामा भर पर्नु पर्दछ किनकी एकात्मक ब्यबस्थामा प्रतिनिधित्वको सवाललाई अधिकारको रुपमा संबैधानिक व्यवस्था गरिएको हुदैन ! लोकतान्त्रिक भनिएका पार्टीहरुले पनि दलित तथा कम संख्यामा भएका आदिबासी जनजातीहरुलाई चुनाबमा टिकट दिन हिच्किच्याउने मुख्य कारण पनि यहि नै हो ! एकात्मक राज्यमा हुने निरपेक्ष ढंगको प्रतिस्पर्धा हेर्दा सुन्दर र समान देखिए पनि त्यहाँ अभिजातवर्गहरु र श्रोत साधन भएका जातीय समुदायका ठालुहरुले नै हालीमुहाली चलाउने गरेका छन् ! त्यसैले संघियताले जातीय-क्षेत्रीय ठालुहरुको राज्य निर्माण गर्छ भन्ने कुरा यो एकात्मक राज्यमा बर्चस्व कायम गरेर बसेका ठालुहरुले आफ्नो बर्चस्व गुम्न लाग्यो भनेर गरेको चिच्याहट मात्र हो ! संघियतामा त संबैधानिक रुपमा नै राज्य शक्ति बाडफाड गरी प्रयोग गर्ने हुनाले निरपेक्ष लोकतन्त्रको तुलनामा कम्जोर जातिहरु तथा वर्गहरुले पनि प्रतिनिधित्व पाउन सक्दछ ! त्यसैले समानता र सहभागितामुलक व्यवस्थाका लागी पनि संघीय राज्य नै उपयुक्त व्यवस्था हो !

( ५ ) राज्यको पुनर्संरचनामा संघियता भए पुग्छ , स्वायत्तता चाहिदैन भने बारे

नेपालमा कतिपय मान्छेहरुले राज्यपुनर्संरचामा संघियता भए पुग्छ तर स्वायत्तता चाहिदैन भन्ने गलत तर्कहरु पनि गरिरहेको छ ! आजको बिश्वमा स्वायत्तता पनि एकात्मक र संघात्मक दुबै खाले ब्यबस्थामा रहेको छ ! नेपालमै पनि २०५५ सालमा स्थानीय स्वायत्त शासन ऐन जारी गरेको थियो तर त्यति बेला राज्यशक्ति केन्द्रमा रहेको हुदा त्यो बिकेन्द्रिकृत र प्रत्यायोजित अधिकारका रुपमा नै सिमित रह्यो . तर डेनमार्क , नर्वे , चिन , बेलायत , पपुवान्युगिनी जस्ता कतिपय एकात्मक राज्यहरुमा धेरै धिकारहरु तल प्रत्यायोजन गरिएको छ ! त्यसको तुलनामा संघीय राज्यमा राज्यशक्ति नै संबैधानिक रुपमा बाडफाड हुने भएकोले त्यहाँका प्रदेश/राज्यहरु अधिकतम रुपले स्वायत्त हुन्छन् ! संघीय राज्य भन्नु नै एउटै केन्द्रमा राज्यशक्ति नहुने अकेन्द्रीकरणको मान्यता हो ! त्यसैले स्वायत्तता बिना संघीय राज्य नै हुदैन ! संघियता र स्वायत्तता एक आपसमा बिपरित तत्व नभई अन्तरसम्बन्धित कुरा हो !!

( ६ ) संघियताले प्रदेशहरु बीच श्रोतको लागी झगडा सृजना गर्छ भन्ने बारे

पक्कै पनि संघीय राज्यमा बहुप्रादेशिक श्रोतहरुको बाडफाड , प्रदेशहरुको सिमा आदि सन्दर्भमा विवाद हुन सक्दछ ! यस्तो विवाद एकात्मक देशहरुमा पनि हुन्छ तर त्यहाँ सम्पूर्ण शक्ति केन्द्रमा हुने हुदा केन्द्रले दिएको निर्यण अन्तिम हुन्छ ! संघीय राज्यमा भने त्यस्तो विवाद आउदा केन्द्रको मध्यस्थतामा बिबादित पक्षबरु बसेर एक आपसमा सहमतिमा टुंग्याईन्छ ! त्यसरी नटुंगिए त्यस्ता विवादहरुको निरुपण अदालत द्वारा गर्ने ब्यबस्था गरिएको हुन्छ ! अमेरिकामा यस्तो अधिकार केन्द्र र प्रदेश दुबैको प्रतिनिधित्व भएको न्यायिक ट्रिब्युनलाई दिएको छ भने इथियोपियामा सिनेटलाई यस्तो अधिकार दिएको छ ! संघीय व्यवस्था राम्रोसंग साफल होस् भनेर विवाद निरुपणको निकाय संबिधानमै नै स्पष्टका साथ किटान गरिएको हुन्छ ! यसरि संघीय ब्यबस्थामा विवादहरु सृजना भए पनि सकेसम्म सहमतिमा , नभए अदालत द्वारा टुंग्याउने हुदा यसले द्वन्दको उचित व्यवस्थापन गर्दछ !

Chart of Power distribution in Federalism

 
( ७ ) संघियताले प्रदेशलाई गरी 'खा' भनेर छोडीदिन्छ ! कर्णाली क्षेत्रका प्रदेशहरु चल्न सक्दैनन् ! धनि प्रदेश झन धनि , गरिब प्रदेश झन गरिब हुन्छ भन्ने बारे

यसलाई पनि केन्द्रले हेर्दा राम्रो हुन्छ , अधिकार दिदा बर्बाद हुन्छ भन्ने केन्द्रबादी मानसिकताकै उपज हो ! वास्तबमा संघ राज्यले प्रदेशहरुलाई नया नया श्रोतहरुको खोजी गरी परिचालन गर्ने अवसर प्रदान गर्छ र केन्द्रले पनि त्यसमा सहयोग गर्ने गर्दछ ! आधुनिक संघ राज्यको स्थापना भन्दा पहिला संघात्मक भन्ने बितिकै महासंघलाई बुझाउने हुदा त्यसको प्रभाबले अहिले पनि कतिपय व्यक्तिहरु संघियताले प्रदेशहरुलाई गरी 'खा' भनेर छाडी दिन्छ भन्ने गलत तर्क गर्न पुग्दछन् ! संघीय राज्यमा राजस्व , श्रोत र साधनहरु संबैधानिक रुपमा नै केन्द्र र प्रदेशबीच बाडफाड हुन्छ ! बर्नाड डाफलोनका अनुसार स्विट्जरल्यान्डमा प्रत्यक करको ३०% केन्द्रले क्यान्टनहरुलाई बाड्छ , जसमध्य १७% कर तिनीहरुको उत्पतिको आधारमा र १३% कर कम्जोर आर्थिक क्षमता भएकाहरुले पाउदछन् ! त्यसबाहेक एकमुस्ट अनुदानको मध्यमबाट आर्थिक समानीकरण (Equalization) को नीति पनि लिईएको छ ! त्यसरी नै क्यानाडामा पनि आर्थिक असमानताहरुलाई समानीकरण गर्ने उदेश्यले केन्द्रले राजस्व बाडफाड गर्दछ भने जर्मनीले पनि प्रति व्यक्ति आय कम भएको ल्याण्डरमा मुल्य अभ्रिब्रिद्द करको बढी हिस्सा पठाउदाछन् ! त्यसरी नै भारतमा केन्द्रले उठाउने करको २९.५% राज्यहरुलाई दिइन्छ , जसको बाडफाडको भार (Weight) ६२.५% धनि र गरिब प्रान्तको प्रति व्यक्ति आयको फरक (Distance of factor) लाई दिइएको छ भने जनसख्यालाई १० , भूगोललाई ७.५ , भौतिक पुर्बाधारलाई ७.५ , करउठौतीलाई ५ र बित्तिय अनुशासनलाई ७.५ प्रतिसत मात्र दिइएको छ ! यसको अलवा केन्द्रले एकमुस्ट , म्याचीङ अनुदान , निश्चित कामका लागी अनुदान , र बजेट घाटा अनुदान पनि दिने गरिएको छ ! यसरि संघीय राज्यको एउटा महत्वपूर्ण मान्यता पिछडिएको राज्यमा निश्चित मापदण्डको आधारमा श्रोत परिचालनको संबैधानिक व्यवस्था हुने भएकोले बिकासमा टेवा पुग्दछ तसर्थ एकात्मकबादीहरुले भन्ने गरेको संघियताले प्रदेशलाई गरी 'खा' भनेर छोडीदिन्छ ! कर्णाली क्षेत्रका प्रदेशहरु चल्न सक्दैनन् ! धनि प्रदेश झन धनि , गरिब प्रदेश झन गरिब हुन्छ भन्ने तर्कमा कुनै सत्यता छैन !!

(Article by Gopal Tamang, Image by Saroj Ray)

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