परिवर्तनकारी शक्तिहरु को लागि एक आवाज
  • Janakpur Railway

    नेपाल को एकमात्र रेल्वे सेवा जनकपुर मा छ तर सरकार पक्ष बाट मधेशीमाथि मात्र विभेद नभएर यस रेल्वे मा पनि भएछ जसले गर्दा यसको हालत झन् झर-झर हुन् पुगेको छ ।

    कहिले काही त् बिना driver पनि कूद छ यो रेल्वे !

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  • Lumbini- Birth place of Lord Buddha

    Lumbinī is a Buddhist pilgrimage site in the Rupandehi district of Nepal. It is the place where Queen Mayadevi gave birth to Siddhartha Gautama. Siddhartha Gautama lived roughly between 623 and 543 BCE and he founded Buddhism as Gautama Buddha.

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Article by Kanak Dixit in Hindustan Times


कनक मणि दीक्षित, वरिष्ठ नेपाली पत्रकार
First Published:15-07-14 08:45 PM in Hindustan Times

नेपाल के मधेसी और भारत की चिंता
नेपाल में राजनीतिक स्थिरता और उसका आर्थिक विकास, दोनों भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, खासकर नेपाल से लगे इसके दो प्रदेशों- उत्तर प्रदेश और बिहार के सुख-चैन इससे खासा प्रभावित होते हैं। भारत के नए राजनीतिक नेतृत्व के लिए यह निहायत जरूरी है कि वह नेपाल के साथ रिश्तों पर ध्यान दे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम को इस दिशा में तत्काल सक्रिय होना चाहिए और काठमांडू में संघीय प्रणाली को लेकर छिड़ी बहस से जुड़ना चाहिए। इस बहस में नेपाल में जो प्रस्तावित किया जा रहा है और भारतीय वार्ताकारों के जो सुझाव हैं, वे किसी भी पक्ष के हित में नहीं हैं। उनके भी नहीं, जो दोनों तरफ के सीमावर्ती मैदानी इलाकों के बाशिंदे हैं।
Kanak Dixit

साल 2007 में नेपाल के अंतरिम संविधान ने इसे संघीय गणराज्य घोषित किया था, लेकिन राज्यों का खाका खींचने का काम संविधान सभा पर छोड़ दिया था। चार वर्षो की कोशिशों के बाद आखिरकार संविधान सभा साल 2012 में धराशायी हो गई और इसके मूल में संघीय स्वरूप को लेकर पैदा हुई कटुता ही थी। पिछले वर्ष नवंबर में हुए चुनावों के बाद यह दूसरी संविधान सभा अस्तित्व में है और अब भी संघीय स्वरूप का निर्धारण ही बहस का केंद्र है। जिस तरीके से राज्यों का गठन होगा, उनसे ही यह तय होगा कि संतुलित विकास के लायक स्थितियां होंगी या फिर ऐसे राज्य गठित होंगे, जिनके तहत कुलीन तबके को फायदा होगा तथा वंचित लोग और अशक्त कर दिए जाएंगे।
नेपाल के संघीये ढांचे को लेकर दो तरह के विचार आमने-सामने हैं। एक तरफ वे लोग हैं, जो आर्थिक भूगोल के आधार पर राज्य गठित करने की मांग कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ वे लोग हैं, जो पहचान के आधार पर राज्यों का खाका खींचने की बात कर रहे हैं। पहले समूह के लोगों का तर्क है कि पहाड़ और मैदान, दोनों को मिलाकर राज्यों की रूपरेखा तय की जाए, ताकि उनमें आर्थिक सहयोग बढ़े और उनका समुचित विकास हो। दूसरी तरफ जातीय (जनजाति) और मधेसी समुदाय के कार्यकर्ताओं (तराई के लोगों) का कहना है कि केवल पहचान पर आधारित संघीय ढांचा ही उन्हें काठमांडू की सत्ताधारी जातियों और वर्गो के ऐतिहासिक चंगुल से मुक्ति दिलाएगा। नेपाल के लोग इस मसले को खुद ही सुलझा लेते, मगर बीजिंग और नई दिल्ली के इसमें कूद पड़ने से यह मसला और उलझ गया है। बीजिंग यह साफ कर चुका है कि वह पहाड़ी इलाकों में जातीय पहचान पर आधारित राज्यों के गठन के पक्ष में नहीं है, शायद चीन तिब्बत में फैली जातीय राजनीति से चिंतित है।दूसरी तरफ, भारत की प्राथमिकता ‘एक मधेसी प्रदेश’ की है। एक मैदानी राज्य के पक्ष में उठी लोकप्रिय मांग को देखते हुए मधेसी समुदाय के संशयवादी भी अब खामोश हो गए हैं।
न तो चीन ने और न ही भारत ने नेपाल के संघीय ढांचे पर अपना पुराना रुख बदला है, जबकि नवंबर 2013 के चुनाव के बाद नेपाल की जमीनी सच्चई बदल चुकी है। नेपाली मतदाता अपने वोट के जरिये आर्थिक भूगोल पर आधारित राज्यों की रूपरेखा के पक्ष में अपनी राय जाहिर कर चुके हैं और इसीलिए उन्होंने नेपाली कांग्रेस और सीपीएन (यूएमएल) को नई संविधान सभा में दो-तिहाई सीटें दीं। माओवादी और मधेसीवादी पार्टियों और पहचान आधारित सूबों के पक्षधरों को उन्होंने इस चुनाव में परास्त कर दिया।
नेपाल के मधेसी नागरिकों को लंबे समय से बोझ समझा जाता रहा है। वे न सिर्फ सामाजिक-आर्थिक रूप से हाशिये पर धकेले जाते रहे, बल्कि काठमांडू में मान्य पहाड़ केंद्रित ‘पहाड़िया’ पहचान से भी वे बेदखल किए गए। ऐसे में, साल 2007 की जनवरी-फरवरी में स्वत:स्फूर्त मधेस आंदोलन एक निर्णायक मोड़ के रूप में सामने आया और इस आंदोलन ने यह सुनिश्चित किया कि काठमांडू व देश के दूसरे हिस्सों में भी मैदान के लोग बराबर सम्मान के हकदार हैं। पहाड़ और मैदान को मिलाकर ही एक नेपाल की समझ विकसित होने लगी। ऐसे में, सवाल यह उठता है कि ऐतिहासिक विलगाव के आधार पर नेपाल के संघीय स्वरूप का ढांचा तैयार होना चाहिए या फिर पूर्व में उपेक्षित समुदायों की समृद्धि को पक्का करने के लक्ष्य के आधार पर? पहचान के आधार पर राज्यों के गठन की मांग ने संघ के स्वरूप की बहस को तराई क्षेत्र के राज्यों पर केंद्रित कर दिया है।
नेपाल में सबसे अधिक गरीबी और शोषण मधेस नागरिकों के बीच ही है और संघ को उनकी राजनीतिक और आर्थिक मुक्ति का वचन देना ही चाहिए। मेरा मानना है कि एक ही सूबे के नागरिक के तौर पर मैदान के लोगों की भी पहाड़ के संसाधनों तक स्वाभाविक पहुंच होनी चाहिए। तराई के इलाके मूलत: कृषि पर निर्भर हैं, यहां औद्योगीकरण की अपार संभावनाएं हैं। केवल खेती से तराई के गरीबों का जीवन-स्तर नहीं सुधर सकता। ये गरीब मधेसी काठमांडू के साथ-साथ मैदानी सामंतों की उपेक्षा के शिकार रहे हैं। इसलिए हमें पहाड़ों की उदार सहायता का यह वादा भी सुनिश्चित करना पड़ेगा कि कृषि-वानिकी, पर्यटन, पनबिजली, सेवा-उद्योग, जल प्रबंधन और सिंचाई आदि पर मैदान के लोगों का भी हक है।
अलग तराई प्रदेश के विचार का पहाड़िया नेताओं द्वारा जोरदार विरोध न किए जाने से भी संदेह होता है। यदि पहाड़ों की प्राकृतिक संपदा तराई की विशाल और गरीब आबादी के साथ साझा नहीं की गई, तो उन पर सिर्फ पहाड़ी सूबों का एकाधिकार होगा। जहां तक अलग तराई प्रदेश में भारत की दिलचस्पी का सवाल है, तो इसके पीछे उसकी अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंता हो सकती है। वह शायद चाहता है कि इस तरह उसकी खुली सीमा के साथ एक बफर क्षेत्र बन जाए। लेकिन बेहतर विकल्प यह है कि भारत में उग्रवादियों की घुसपैठ को रोकने के लिए नेपाल से अधिक सहयोग मांगा जाए। इस लिहाज से मौजूदा व्यवस्था से अधिक कारगर प्रत्यर्पण संधि होगी। यदि इसके पीछे नेपाल में चीन के बढ़ते प्रभाव को (यदि वह है) रोकना है, तो बफर क्षेत्र का यह विचार कारगर साबित नहीं होगा, क्योंकि चुरे/ शिवालिक पहाड़ियों की तरफ से चीन का वह प्रभाव आ सकता है।
साफ है, नेपाल में संघीय ढांचे को लेकर जारी बहस में भू-राजनीतिक, राजनीतिक-आर्थिक और सामुदायिक पहलुओं के साथ न्याय नहीं हो रहा। इस मसले पर दिल्ली, लखनऊ और पटना की सिविल सोसायटी, अकादमिक क्षेत्र और राजनीतिक तबके में किसी प्रकार की खुली बहस न होने के घातक निष्कर्ष निकल सकते हैं। एक समृद्ध तराई नेपाल के लिए तो अच्छा है ही, इससे उत्तरी बिहार और उत्तर प्रदेश को भी आर्थिक संबल मिलेगा। मगर यदि नेपाल के संघीय ढांचे को गढ़ने में कोई चूक हुई, तो इसकी कीमत दोनों देशों के लोगों और समाज को चुकानी पड़ेगी।

Source: Hindustan Times

Bring Black Money Home

Money earned from illegal sources is deposited in banks which later invested in share to make it white and ultimately that money used to strengthen illegal business. The vicious circle of money laundering has emerged to cheat revenue and wash black money to white.

The scale of money laundering in Nepal is unknown. Some are of the opinion that given the informal nature of the economy, predomination of cash transactions, open border with India, unstable political situation and rampant existence of predicate offenses like corruption, bribery, smuggling, human and drug trafficking, use of counterfeit currency, and of late, extortion, looting and arms trading all have combined to make Nepal a fertile ground for money laundering.

Money laundering is the main cause of black money in Nepal

Live Example: We all know that there is shortage of Indian Currency in Nepali market and even in Bank too. People are going India day to day for many purposes. Such as for marketting, for treatment, for higher studies, etc. They handed Nepalese currency to Nepalese money launder and take Indian currency from Indian money launder.
If this is happening publicly then imagine about gold, drugs and other valuable smugling from India and abroad and in this how much black money invested or earned? Birgunj, Biratnagar, Nepalgunj and Kathmandu are the major cities where exchange business of money is running publicly.

Banks should follow certain customer identification procedure for opening of accounts and monitoring transactions to stop the money laundering process.
Administration should stop the exchange business of money which is running publicly.

And the most important thing, our government should make policy to bring black money home from abroad. There is no certain data to me to show how much black money is in abroad but it will certainly helps in our country development.

But for this our officers have to be brave and honest likes SP Ramesh Kharel and Minister Lalbabu Pandit.

Voice of #ekawaaj

Royal massacre of Nepal

अज्ञात व्यक्तिले गोली चलाएर वीरेन्द्रको वंशनाश गरेको दाबी गरेका छन् । १९ जेठ २०५८ मा नारायणहिटीको त्रिभुवन सदन (घटनास्थल) मा ड्युटीमा रहेका तत्कालीन सैनिक हवल्दार लालबहादुर लम्तेरी मगरका अनुसार हत्याराले पहिलो गोली नै दीपेन्द्रलाई हानेको थियो ।

दरबार हत्याकान्डको तीन महिनापछि हत्याको अभियोगमा मुद्दा चलेर अहिले नख्खु कारागारमा रहेका लम्तेरी मगरले गत साता नयाँ पत्रिकासित लामो कुराकानी गरे । उनले यतिसम्म भने, ‘दीपेन्द्रको ढाडमा ६ राउन्ड र बायाँ कन्चटमा एउटा ब्रस्ट फायर भएको हो ।’

हरेक महिनाको अन्तिम शुक्रबार ‘गुड फ्राइडे’ मनाउने क्रममा त्यस रात (१९ जेठ २०५८) भोजमा सरिक तत्कालीन राजा वीरेन्द्रसहित उनको परिवारका पाँचैजना र नातेदारको पनि हत्या भएको थियो । सरकारले पहिले स्वचालित हतियार पड्किएको बताएको थियो भने पछि दीपेन्द्रले गोली चलाएर आफ्नै बाबु, आमा, भाइ र बहिनी मारेको प्रतिवेदन सार्वजनिक गरेको थियो ।

दीपेन्द्रले गोली चलाएका होइनन्, षड्यन्त्रपूर्वक वंश नै नाश गरेर दीपेन्द्रलाई दोषी बनाइएको हो भन्ने चर्चा जनमानसमा भए पनि घटनाका कुनै पनि प्रत्यक्षदर्शीले दीपेन्द्र हत्यारा होइनन् भनेर बयान दिएका थिएनन् । ‘दीपेन्द्रले होइन, नकाव लगाएर उनको जस्तै अनुहार बनाएको हतियारधारीले’ गोली चलाएको थियो भन्ने लम्तेरी घटनाको पहिलो ‘प्रत्यक्षदर्शी’ हुन् । उनका अनुसार नकावधारी तत्कालीन शाहजादा पारस शाहसँगै भित्र आएका थिए । ‘भोज चलिरहेको बेला पारस गाडीमा बाहिरए,’ लम्तेरीले भने, ‘केहीबरेपछि त्यही गाडीमा दीपेन्द्रको मुखुन्डोधारी भित्र आएको हो ।’
Truth from Lamteri Magar Prince Dipendra was shot earlier

लम्तेरीले घटना हुँदा दीपेन्द्र आफ्नै खोपीमा रहेको पनि बताए । ‘मलाई नै थाहा छ- दीपेन्द्र सरकार नसा लागेर खोपीमा सुतेका थिए, नकावधारीले पहिलो गोली त्यहीँ चलाएका हुन्, त्यसपछि चारैतिरबाट गोली चल्यो, मचाहिँ केराघारीमा ल्यान्ड पोजिसनमा बसेर बचेँ ।’

लम्तेरी मगरका अनुसार दीपेन्द्र आफ्नै खोपीमा मरेका हुन् । ‘दुईजना एडिसीले लास उठाएर सैनिक प्रहरीको गाडीमा छाउनी पुर्‍याएका हुन् । दीपेन्द्र त्यतिबेलै मरिसकेका थिए,’ उनले भने ।

वीरेन्द्र र नीराजनको लास आफूले पनि उठाएको उनले बताए । ‘मैले पनि वीरेन्द्र र नीराजन सरकारको लास उठाएको हुँ,’ उनले भने, ‘वीरेन्द्र सरकारको लास लिएर सैनिक अस्पताल जानेमा म पनि थिएँ । सैनिक प्रहरीको गाडीमा म पछाडि बसेको थिएँ । बाटोमा वीरेन्द्रले सानो स्वरमा दुख्यो, दुख्यो भनेको मैले सुनेको हुँ । अस्पताल पुगेपछि के भयो थाहा छैन ।’

गोलीको वषर्ात्पछि सन्नाटा छाएको घटनास्थलमा पारस खालीखुट्टामै आएको उनले बताए । ‘ल अब हस्पिटल लैजानुपर्‍यो भनेका थिए पारसले,’ लम्तेरीले भने, ‘पारस र उनका परिवारलाई केही पनि भएको थिएन ।’

खोपीमा सुतेका दीपेन्द्र त्यहीँ मारिएको देखेका लम्तेरीले पछि दीपेन्द्र नै हत्यारा हुन् भन्दै प्रतिवेदन आएपछि आश्चर्यमा परेको बताए । दीपेन्द्र निर्दोष हुन् भन्दै उनले दरबारमा बिन्तीपत्र पनि हालेका थिए । ‘घटनाको साता दिनभित्रै जेठ २५ गते मसहित लेसनायक नरेन्द्र थापामगर, हवल्दार शिव कुँवर, नायक गुणबहादुर पुन र एउटा सिपाही भएर दरबारको प्रमुख सचिवालयमा बिन्तीपत्र हाल्यौं,’ लम्तेरीले भने, ‘हामीले बेनामी बिन्तीपत्रमा दीपेन्द्रबाट घटना भएको होइन, यसको निष्पक्ष छानबिन होस् भन्यौं ।’

आफ्नो अभिभावकजस्तो मान्छे दीपेन्द्र मारिएपछि ‘त्यतिसम्मको दुस्साहस’ गरेको उनले बताए । तर ‘कतैबाट पोल खुलेपछि २९ जेठमै आफ्नै हाकिमहरूद्वारा समातिएको’ उनले बताए । ‘पहिले दरबारमा आतंक मच्चाएको भन्दै समातियो, पछि एउटा होटलमालिकलाई मारेको भन्ने झुटो केस चलाएर मुद्दा हालियो ।’

आफू कलाकार पनि भएकोले दीपेन्द्रको प्यारो मान्छे भएको दाबी गर्दै उनले भने, ‘म सांगीतिक क्षेत्रको मान्छे, बाजा बजाउन, नाच्न, गाउन र खेल खेल्न सधैं अघि सर्थें, त्यसैले पनि दीपेन्द्र सरकारका लागि म निकै प्यारो मान्छे थिएँ ।’

उनले दीपेन्द्रलाई मुड भएको बेला खोपीमै गएर गीत गाउने गरेको पनि बताए । ‘गीत सुन्नुपर्‍यो भने त्यो डल्लुलाई बोलाऊ भन्ने हुकुम हुन्थ्यो । म खोपीमै जान्थें । गीत सुनाएर खुसी पार्थें,’ उनले भने ।

उनका अनुसार संगीतकार प्रवीण गुरुङलाई गाडीले किचेर मारेको आरोपमा तत्कालीन राजा वीरेन्द्रले पारसलाई कारबाही गर्न खोजेका थिए । ‘तर पारसको चुनौतीका कारण उनी (वीरेन्द्र) पछि हटे,’ उनले भने । लम्तेरी मगरका अनुसार प्रवीण गुरुङ मारिनुअघि श्रुतिले चलाएको कारको ठक्करले दरबारभित्रै तनहुँ घर भएका पुरानो गोरखगणका सिपाही मारिएका थिए । ‘ऊ ड्युटीमै उभिएको बेला गाडीको ठक्करले मर्‍यो । पछि बाहिर तालिमका बेला एम्बुसमा परेर मारियो भनेर परिवारलाई क्षतिपूर्ति दिइयो ।’ पारसले आफूलाई भन्दा अघि श्रुतिलाई कारबाही गर्न वीरेन्द्रलाई चुनौती दिएपछि वीरेन्द्र मत्थर भएको लम्तेरीले बताए ।

दरबार हत्याकान्ड दीपेन्द्रले नगराएको भन्ने बिन्तीपत्र लेखेको चार दिनमा पक्राउ गरिएका लालबहादुर सोह्रखुट्टेस्थित आरामदायी लजका मालिक उत्तमराज पाण्डेको हत्या अभियोगमा जेल परेका हुन् । उनी जन्मकैदको सजाय नख्खु जेलमा बसेर भोगिरहेका छन् । ‘म निर्दोष छु,’ उनले भने, ‘मलाई जेल हाल्ने कुनै आधार थिएन, तर म गरिबको छोरोलाई कानुनले पत्याएन ।’

उनको मुद्दा हेरेका अधिवक्ता भूमिनन्द चुँडालले पनि लम्तेरी निर्दोष रहेको जिकिर गरे । ‘लालबहादुरलाई जेल हाल्नुपर्ने कुनै आधार छैन,’ उनले नयाँ पत्रिकासँग भने, ‘उनलाई हत्याको अभियोग लगाइएको छ, तर त्यसको कुनै पनि प्रमाण छैन । ऊ सफाइ पाउनुपर्ने मान्छे हो ।’

नख्खु कारागारका जेलर चन्द्रप्रसाद देवकोटाले लालबहादुर कर्तव्य ज्यान मुद्दामा जेलमा रहेको बताए । देवकोटाका अनुसार उनी २ भदौ २०५८ देखि जेल छन् । जेलको रेकर्डअनुसार लम्तेरी पुरानो गोरखगणका सैनिक हुन् । लालबहादुरले आफूलाई सैनिक प्रहरीबाट नक्कली कागजात बनाएर पुरानो गोरखगणमा सरुवा मात्र होइन, घटुवा गरेर जेलमा हालिएका बताए ।

लम्तेरीको बयान

म लालबहादुर लम्तेरी मगर, घर पाल्पाको ठिमुरे हो । २०४९ सालमा सेनामा भर्ती भएर दरबारको सैनिक प्रहरीमा काम गर्न थालेको हुँ ।

म खेलाडी पनि थिएँ, गीत-संगीतमा त च्याम्पियन । ‘रोयल फेमिली’सँग एकदमै नजिक । दीपेन्द्र सरकारले मलाई यति माया गर्ने कि म कसरी भनौं ! कतिसम्म भने मेरी श्रीमती डेलिभरी हुँदा दीपेन्द्रबाट १० हजार रुपैयाँ बक्सिस प्रदान भएको थियो ।

दरबारमा काम गर्दा त मोजमस्ती थियो, खर्चको अभाव हुँदैनथ्यो । केही पर्‍यो भने पैसा पाइहाल्थें । दीपेन्द्र सरकारले त मलाई खोपीमै बोलाएर बाजा बजाउन लगाउने, पैसा दिने, बडो माया गर्ने ।

जागिर खाएको नौ वर्षमा मेरो जीवनमा ठूलो चोट पर्‍यो, मैले अनाहकमा दुःख पाएँ । महिनाको अन्तिम शुक्रबार शाही परिवारले जलपान गरेर ‘गुड प|mाइडे’ मनाउने चलन थियो । १९ जेठ २०५८ मा पनि जलपान आयोजना भयो दरबारमा । त्यो दिन म पनि बाहिरी ड्युटीमा थिएँ । दौरा, सुरुवाल, कोट र कालो टोपी लगाएर पेस्तोल भिरेर म ड्युटी गरिरहेको थिएँ । त्यतिबेला मलाई याद छ- नेपाल टेलिभिजनमा सन्तोष पन्तको ‘हिजो आजका कुरा’ कार्यक्रम आउँथ्यो ।

अबेरसम्म जलपान भइरहेको थियो । त्यहीबीचमा पारस गाडीमा बाहिरिए । एकैछिनपछि उनको गाडीमा केही मान्छे भित्र छिरे, पारस पनि छिरे । यो दृश्य त्रिभुवन सदनमा गार्ड बस्ने अरू सैनिकले पनि देखेका छन् । त्यसपछि फायरिङको आवाज आयो ।

दीपेन्द्र सरकार नसाले लठ्ठ भएर आफ्नै खोपीमा सुतेको मलाई पनि थाहा छ । भित्र जान हामीलाई अनुमति थिएन । आदेशबिना दायाँबायाँ गर्न पनि नपाइने । दरबारको ड्युटी फेरि निकै कडा हुन्छ क्या ! मैले थाहा पाएँ, पहिलो फायर दीपेन्द्र सरकारको खोपीमा भयो । त्यहाँ सात फायर भएपछि त जलपान भएको ठाउँमा एकैचोटि गोली चल्यो । बाहिर पनि । दीपेन्द्रको मुखुन्डो लाएको हतियारधारीले गोली चलायो । वीरेन्द्रका परिवारलाई ताकी-ताकी हान्यो उसले । दीपेन्द्रलाई त ब्रस्ट फायर भयो । बाहिरसमेत गोली चलेपछि ज्यान जोगाउन मुस्किल भो । म त्रिभुवन सदनअगाडि बगैंचामा लुकें ।

गोली रोकिएपछि पारस खालीखुट्टा आइपुगे, खुट्टामा जुत्ता, चप्पल केही थिएन । उनले आउनेबित्तिकै भने- ल भाइ हो, हस्पिटल लानुपर्छ । त्यसपछि घाइते र लास उठाउन थालियो । म पनि लास उठाउन गएको थिएँ । मैले वीरेन्द्र सरकार र नीराजनलाई उठाएँ । ऐश्वर्यको चिउँडो छेडेर गोली चलेको रहेछ । चिउँडो त पंखामा झुन्डिएको रहेछ ।

अस्पताल जाँदासम्म सास भएको अवस्थामा वीरेन्द्र सरकार र श्रुति थिए । धीरेन्द्रको बारेमा मलाई थाहा भएन । वीरेन्द्रको मृत्यु भइसकेको थिएन । वीरेन्द्रलाई हालिएको सैनिक प्रहरीको गाडीमा पछाडि बसेर म पनि छाउनी अस्पताल गएको थिएँ । म सम्झिन्छु, अस्पताल पुग्ने बेलासम्म वीरेन्द्र दुख्यो, दुख्यो भनेर सानो स्वरमा भनिरहेका थिए ।

सैनिक अस्पताल पुर्‍याइए पनि वीरेन्द्र सरकारलाई तत्कालै उपचार गरिएन, ऐश्वर्यको मुख नभएकोले प्लास्टिक सर्जरी भयो । हामीले धेरै हेर्न पाएनौं । हामी त हाकिमको आदेशअनुसार अस्पतालबाट फक्र्यौं । त्यसपछि के गरियो थाहा भएन ।

मैले आफैं देखेको, दीपेन्द्रको पहिले नै हत्या भइसकेको थियो । तर, दीपेन्द्रलाई दोषी बनाएपछि मेरो मन धेरै रोयो । म र साथीहरूले जेठ २५ गते १२ बजेतिर बिन्तीपत्र तयार गर्‍यौं र ४ बजेतिर प्रमुख सचिवालयमा दर्ता गर्‍यौं । सायद हाम्रो रेकर्ड सचिवालयमा होला अहिले पनि । बिन्तीपत्र हाल्नेमा म अगुवा थिएँ । बिन्तीपत्र दिनेमा लेसनायक नरेन्द्र थापामगर, हवल्दार शिव कुँवर, नायक गुणबहादुर पुन र अर्का एक सिपाही थियौं ।

हामीले बिन्तीपत्र दिएपछि त त्यहाँ हलचल भएछ । हामीले भनेका थियौं- दरबार हत्याकान्डमा युवराज दीपेन्द्र सरकार दोषी होइनन् । पहिलो फायर नै उनीमाथि भएको हो । त्यसकारण निष्पक्ष छानबिन होस् ।

बिन्तीपत्र हालेको चार दिनमा दरबारमा आतंक मच्चाएको भन्दै मलाई पक्राउ गरियो । २९ जेठमा ड्युटी सकेर खाना खाएर कोठामा पल्टिन लाग्दा निर्मल निवास (सदन- हाम्रो भाषामा) को फौज आएर मलाई समात्यो ।

मलाई आँखामा कालोपट्टी बाँधेर क्वार्टर गार्डमा (हिरासतमा) राखियो । जबकि मेरो दोष केही पनि थिएन । आँखामा पट्टी बाँधेर नेपाली कागजहरूमा ल्याप्चे लगाउन लगाइयो ।

एक सातापछि मलाई हनुमानढोकामा लगेर बुझाइयो । त्यसपछि मलाई एक महिनाजति झुलाइयो । कहिले सैनिक हेडक्वार्टर, कहिले प्रहरी हेडक्वार्टर, कहिले कता लगेर एक महिना झुलाइयो ।

दरबारभित्रको सैनिक हिरासतमा रहँदा मलाई ल्याप्चे लगाउन लगाइयो । पछि थाहा भयो, मलाई पुरानो गोरखगणमा सरुवा गरेर सिपाहीमा घटुवा गरेको कागज बनाइएछ । र, सैनिक प्रहरीमा रहेको मेरो कागजात सबै खतम पारिएछ । एक महिनाअघि समातेर मलाई एक महिनापछि भएको घटनामा फसाइयो ।

२ साउन २०५८ मा सोह्रखुट्टेको आरामदायी लजका मालिक उत्तमराज पाण्डेको हत्या भएको रहेछ । मैले जेलमा बसेपछि सुनेअनुसार दरबारका एक क्याप्टेनले पाण्डेलाई गोली ठोकेर मारेका रहेछन् । पाण्डे नवलपरासीका रहेछन् भन्ने मलाई फसाइएको नक्कली कागज हेरेर थाहा पाएँ । तर, कुन केसमा पाण्डेलाई किन मारियो भन्ने मलाई केही थाहा थिएन किनकि म त एक महिनाअघि नै पक्राउ परिसकेको थिएँ ।

मलाई ५ भदौ २०५८ मा पुर्पक्षका लागि भनेर जेल हालियो । जेलमा बसेर मुद्दा लडें । सुरुमा वकिल भूमिनन्द चुँडाल र पछि तारा खनालको सहयोग लिएँ । १३ फागुन २०६० मा काठमाडौं जिल्ला अदालतले मलाई दोषी ठहर गर्‍यो । र, म जेल परें ।

म हिरासतमा बस्दा शाही रक्षक बाहिनीका बाहिनीपति सुदर्शन खड्का, पारसका हितैषी अनुप सिंह मलाई भेट्न आइरहन्थे । उनीहरू भन्थे- दरबार तिमीप्रति पोजिटिभ छ । हामी छुटाउन पहल गरिरहेका छौँ ।

तर, दरबारले मेरो जिन्दगी बर्बाद बनाइदियो । बिन्तीपत्र हाल्ने मेरा साथीहरूलाई पनि समातियो भन्ने थाहा पाएँ, तर उनीहरू अहिले मरे-बाँचेको मलाई थाहा छैन ।

यो पनि लेखिदिनुस्- दरबार हत्याकान्डमा सैनिकहरू पनि मारिएका छन् । मलाई यकिन विवरण त छैन, तर छानबिन गरे थाहा हुन्छ । मारिएका परिवारलाई अरू केही वहानामा क्षतिपूर्ति दिइएको हुन सक्छ, तर हत्याकान्डमा सैनिक मारिएका छन् । सत्यतथ्य खोजी गर्ने हो भने पारसलाई समातेर बयान लिनुपर्छ । सबै कुरा थाहा हुन्छ । सरकारले चाहने हो भने दरबार हत्याकान्डको बारेमा निष्पक्ष छानबिन गर्न अझै पनि सक्छ ।

पर्शुराम काफ्ले/नयाँ पत्रिका

Seven serial blast in janakpur

एक पछि अर्को लगातार सात धमाका सुनेर जनकपुर वासी स्तम्भ भएका थिए । हिजो (फाल्गुन -१२ गते) ६.२४ बजे तिर जनकपुरको रामानन्द चौकमा लगातार ७ धमाका भए । यो धमाका होटल सित पैलेस को छेउमा भएको ले जनता झन आतंकित भएका थिए किनभने बिगतमा पनि होटेल सीता पैलेसको मालिक 'जीवनाथ चौधरी' लाई निशाना बनाई 'मिथिला संघर्ष' समिति को कार्यक्रममा ठुलो बम बिस्फोट भएको थियो जसमा ४ सर्वसाधारण ले जान गुमाउनु परेको थियो ।
तर जानकी जी को कृपा रहेको जनकपुरमा यसपाली बम बिस्फोट नभएर गैस सिलिन्डर बिस्फोट भएको हो । विधार्थीहरु बसेको उक्त घरमा अचानक सिलिन्डर बिस्फोट भयो र आगो लागेपछि थप सिलिन्डरहरु मा पनि आगोलागी एकपछि अर्को गरि सात धमाका भएका थिए । अचम्भ को कुरा यो हो कि प्रत्यक्षदर्शी को अनुसार आगो लागेको घटना स्थलमा बारुण-यन्त्रको गाडी एक घण्टा पश्चात पुगेका थिए ।

 घटना स्थलका 'live video'

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